हर दम दुआएँ देना
Posted by Sandesh Dixit on January 17, 2009
हर दम दुआएँ देना हर लम्हा आहें भरना
इन का भी काम करना अपना भी काम करना
याँ किस को है मय्यसर ये काम कर गुज़रना
एक बाँकपन पे जीना एक बाँकपन पे मरना
जो ज़ीस्त को न समझे जो मौत को न जाने
जीना उंहीं का जीना मरना उंहीं का मरना
हरियाली ज़िन्दगी पे सदक़े हज़ार जाने
मुझको नहीं गवारा साहिल की मौत मरना
रंगीनियाँ नहीं तो रानाइयाँ भी कैसी
शबनम सी नाज़नीं को आता नहीं सँवरना
तेरी इनायतों से मुझको भी आ चला है
तेरी हिमायतों में हर-हर क़दम गुज़रना
कुछ आ चली है आहट इस पायनाज़ की सी
तुझ पर ख़ुदा की रहमत ऐ दिल ज़रा ठहरना
ख़ून-ए-जिगर का हासिल इक शेर तक की सूरत
अपना ही अक्स जिस में अपना ही रंग भरना
Shyam Negi said
bahut umda likha hai…..shabd nashtar se bankar dil me utar ja rahe hai.
ramji prajapati said
kya mai batau kis kis ko samjhau